नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) को गिरफ्तारी और संपत्ति जब्त करने जैसी विशेष शक्तियाँ देने वाले 2022 के अपने ऐतिहासिक फैसले पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है। इसकी मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों की पुनर्गठित पीठ का गठन किया है। यह फैसला हाल के महीनों में ईडी की कार्रवाईयों को लेकर उठे सवालों और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच आया है। 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने PMLA की धारा 5, 8(4), 17 और 19 को वैध ठहराते हुए कहा था कि ईडी को संपत्ति जब्त करने और आरोपियों को गिरफ्तारी करने का जो अधिकार मिला है, वह संविधान के दायरे में है। अदालत ने उस वक्त यह भी माना था कि ईडी की पूछताछ को "पुलिस कार्रवाई" नहीं माना जा सकता और इसलिए इसे सीआरपीसी की सामान्य प्रक्रियाओं से मुक्त रखा गया।
क्या हैं पुनर्विचार की मुख्य वजहें?
न्यायिक समीक्षा की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह फैसला नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। खासकर गिरफ्तारी से पहले FIR या शिकायत की आवश्यकता न होना, ईडी द्वारा दर्ज बयानों को साक्ष्य मान लेना, और जमानत की प्रक्रिया को कठिन बना देना – ये सब संविधान की मूल भावना के विरुद्ध बताए जा रहे हैं।
राजनीतिक संदर्भ भी अहम
हालिया वर्षों में ईडी द्वारा की गई कई हाई-प्रोफाइल गिरफ्तारियों और छापों को लेकर विपक्षी दलों ने एजेंसी पर 'राजनीतिक हथियार' बनने का आरोप लगाया है। कई नेताओं का कहना है कि ईडी के ज़रिए लोकतांत्रिक विरोध को दबाने की कोशिश की जा रही है।
अब नई पीठ यह तय करेगी कि 2022 के फैसले को संवैधानिक बेंच के समक्ष पुनर्विचार के लिए भेजा जाए या नहीं। इस सुनवाई के नतीजे भविष्य में ईडी की कानूनी स्थिति और उसकी कार्यप्रणाली को सीधे प्रभावित कर सकते हैं। सुनवाई की अगली तारीख जल्द घोषित की जाएगी।