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‘आदिवासियों के दबाव ने ही राजनीतिक दलों को सरना धर्म कोड को एजेंडे में शामिल करने पर विवश किया’

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द फॉलोअप डेस्क

बाबा कार्तिक उरांव ने अपने जीते जी देशभर के अलग-अलग आदिवासी समाज समुदाय की एक अलग आदिवासी धार्मिक पहचान देश और विश्व में स्थापित हो, के लिए एक लंबा आंदोलन किया। आदिवासी संविधान विशेषज्ञ निर्माताओं ने संविधान सभा में अपने विचार रखे। कई उतार चढ़ाव हुए और क्रमबद्ध तरीके से झाड़ झंखाड़ झारखंड,छत्तीसगढ़,उड़ीसा मध्यप्रदेश,पश्चिम बंगाल, राजस्थान और उत्तर पूर्व राज्यों असम समेत नेपाल में भी आदिवासी समाज और  समुदाय के जल जंगल जमीन उसकी सभ्यता संस्कृति परंपरागत स्वशासन व्यवस्था भाषा की पहचान के लिए आंदोलन होते रहे हैं। यही नहीं, देश की राजधानी दिल्ली में रहने वाले आदिवासियों ने भी आदिवासी समाज और समुदाय की पहचान को स्थापित करने को लेकर आवाज उठाते रहे हैं।

इसी में आदिवासी जीवन शैली की महत्ता को अक्षुण्ण रखने के लिए प्रकृतिक पूजक आदिवासियों ने धार्मिक पहचान को भी बरकरार रखने की बात को देशभर के सामने रखा। तब बात आई सरना धरम कोड को अलग जनगणना कालम में शामिल किया जाने का। हालांकि अलग धरम कोड की मांग काफी पुरानी है लेकिन ८० के दशक के समय सरना धरम कोड/ आदिवासी धरम कोड की मांग में काफी तेजी आई और धरम कोड की मांग का आंदोलन जोर पकड़ लिया,
जिसमें झारखंड अग्रणी भूमिका में शामिल रहा.बंगाल में भी आदिवासियों ने सरना धर्म कोड/ आदिवासी धरम कोड को लेकर एक लंबी लड़ाई लड़ी।

पूर्ण रूप से सामाजिक संगठनों द्वारा ही सरना धरम कोड/ आदिवासी धरम कोड की मांग हमेशा से की गई। किसी भी राजनीतिक दलों ने कभी भी अपने एजेंडे में सरना धरम कोड की मांग को शामिल नहीं किया था। लेकिन जैसे जैसे आदिवासी समाज समुदाय जागृत होता गया वैसे-वैसे राजनीतिक दलों ने भी अपने अपने आदिवासी जनप्रतिनिधियों और नेताओं को सरना धर्म कोड/ आदिवासी धरम कोड के आंदोलन में शामिल होने को कहा। आज के दिनों में सरना धर्म कोड/ आदिवासी धरम कोड की मांग देश के अन्य हिस्सों राज्यों में उठने लगी है। और इस मांग को देशभर में आंदोलन के रूप में स्थापित करने वालों में सामाजिक संगठनों और उनके अगुओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही। आदिवासियों की धार्मिक संगठन विभिन्न राज्यों में स्थापित सरना समितियों की भूमिका सबसे ज्यादा रही। 
इसी आंदोलन का प्रभाव था कि झारखंड मुक्ति मोर्चा की हेमंत सोरेन सरकार ने इसकी महत्ता को समझते हुए सरना धरम कोड/ आदिवासी धरम कोड की मांग को समर्थन करते हुए अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल कर कहा कि सरना धरम कोड/ आदिवासी धरम कोड के कालम को जनगणना पत्र में शामिल किया जाये। इसकी पहल करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सरना धरम कोड/ आदिवासी धरम कोड की नियमावली और कैबिनेट नोट तैयार करने की जिम्मेवारी सौंपी थी।

वर्ष 2020 नवंबर महीने में झारखंड विधानसभा चुनाव के समय दुमका में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रधान सचिव राजीव अरूण एक्का ने हमलोगों- से(प्रभाकर तिर्की - रतन तिर्की) से आग्रह किया कि सरना धरम कोड/ आदिवासी धरम कोड का कैबिनेट नोट और नियमावली तैयार कर दिया जाये। उस वक्त हमलोग प्रभाकर तिर्की, रतन तिर्की, प्रेमचंद मुर्मू दुमका चुनाव में भाग लेने पहुंचे थे. प्रभाकर तिर्की और हमने शाम सात बजे से लेकर सुबह तीन बजे तक सरना धरम कोड/ आदिवासी धरम कोड का कैबिनेट नोट और नियमावली तैयार कर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रधान सचिव राजीव अरूण एक्का को भेज दिया.
इसमें एक महत्वपूर्ण बात को जरूर जोड़ना चाहूंगा कि सरना धरम कोड/ आदिवासी धरम कोड कैबिनेट नोट और नियमावली तैयार करने से पहले हमलोगों ने दिवंगत आदिवासी समाज समुदाय के अगुआ स्व:डा करमा उरांव से सुझाव मांगा और बताया कि सरकार ने हमलोगों को यह कार्य सौंपा है। तब डाक्टर कर्मा उरांव ने सुझाव दिया और कहा कि आपलोग तैयार कर मुझे बताईए. हमलोगों ने डा करमा उरांव को भी कैबिनेट नोट और नियमावली तैयार कर प्रेषित किया तो करमा उरांव ने इसे काफी सराहा और कहा था कि इसे सौंप दिया जाये.


यहां यह जिक्र करना आवश्यक है कि सरना धरम कोड/ आदिवासी धरम कोड नियमावली के निर्माण में सभी आदिवासी समाज समुदाय, धार्मिक संगठनों, पारंपरिक अगुओं पड़हा,मानकी मुंडा, माझी परगनैत, डोकलो सोहोर, सरना समितियों के अनवरत आंदोलन और समाज समुदाय की भागीदारी एवं सहयोग से ही हमलोगों ने एक जबरदस्त सरना धरम कोड/ आदिवासी धरम कोड नियमावली को तैयार किया और हेमंत सोरेन सरकार को सौंप दिया। आज सबों के आंदोलन का ही परिणाम है कि झामुमो ने इसकी पहल की और कांग्रेस ने भी सरना धरम कोड को जनगणना पत्र में अलग से कालम जोड़ने की मांग की है.
यहां यह भी बताना आवश्यक है कि कैथोलिक चर्च के पूर्व कार्डिनल आर्चबिशप स्व: तेलेस्फोर टोप्पो ने भी सरकार को पत्र लिखकर आदिवासियों के लिए जनगणना पत्र में धरम का कालम शामिल करने की मांग की थी. मतलब चर्च को कहीं भी आपत्ति नहीं है कि आदिवासी समाज समुदाय को सरना धरम कोड मिलना चाहिए। हालांकि भाजपा के अंदर भी आदिवासी जनप्रतिनिधियों ने दबी जुबां से इसका समर्थन करना शुरू भर किया है। लेकिन अन्य राजनीतिक दलों में इसकी सुगबुगाहट नहीं दिखाई देती है। आज राज्य भर में सरना धर्म कोड/ आदिवासी धरम कोड की मांग को लेकर आंदोलन की रणनीति रूपरेखा बन चुकी है।
इसलिए हमलोगों ने सोचा कि समाज समुदाय को जानना चाहिए कि बड़ी मेहनत से हमलोगों ने सरना धरम कोड की नियमावली बनाई है। इसलिए आंदोलन कर आदिवासी धरम कोड का कालम जनगणना पत्र में शामिल सभी मिलकर करेंगे तो निश्चित रूप से यह शामिल होगा।

यह आदिवासी नेता प्रभाकर तिर्की और रतन तिर्की के व्यक्तिगत विचार हैं। उनके ही आलेख हैं।

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