हिमांशु कुमार
झारखंड की राजधानी रांची में रातू रोड फ्लाइओवर बनकर तैयार है। आगामी 19 जून को इसका उद्घाटन मंत्री नितिन गडकरी द्वारा निर्धारित है। अभी कुछ दिनों पहले राज्य के मुखिया हेमंत सोरेन द्वारा मेकन-सिरमटोली फ्लाइओवर का उद्घाटन किया गया, जिसका नामकरण बाबा कार्तिक उरांव के नाम पर किया गया।
इस पुनीत कार्य का पूरे झारखंड में स्वागत किया गया। अब रातू रोड फ्लाइओवर का नामकरण बिनोद बिहारी महतो के नाम पर कर एक और विभूति को सम्मान देने का समय है—एक ऐसा नाम, जिसके बिना हमारे गौरवशाली प्रदेश का इतिहास अधूरा होगा। बिनोद बिहारी महतो, जिन्हें हम सभी बड़े आदर-सम्मान से विनोद बाबू कहते हैं, जिन्होंने झारखंड की अस्मिता को बुलंद करते हुए कहा था— "हमारे क्षेत्र में विकास के सभी संसाधन मौजूद हैं, जरूरत है सिर्फ ईमानदार प्रयास की।"
ये शब्द सिर्फ उस व्यक्ति की पीड़ा को उजागर नहीं करते, जिसने अलग राज्य की नींव रखी, बल्कि ये शब्द उस मानसिकता को बल देते हैं जिसकी सोच थी—"पढ़ो और लड़ो"।
लड़ो अपने आत्म-सम्मान के लिए, लड़ो अपनी पहचान के लिए, लड़ो अपने जल, जंगल, ज़मीन और आसमान के लिए। यह सोच थी उस महान क्रांतिकारी, राज्य के आंदोलन के पुरोधा विनोद बाबू की।
आज राज्य गठन के 25 वर्ष हो गए हैं। 25 वर्षों के इस झारखंड को मिला क्या—यह बात फिर कभी। क्योंकि इसकी तह में जाएंगे तो खाली हाथ ही आएंगे, हाथ कोयले की दलाली में काले अलग हो जाएंगे।
बात विनोद बाबू की हो रही है, तो उनके अदम्य इच्छाशक्ति से ही शुरू होनी चाहिए। धनबाद जिले के बलियापुर के बेहद गरीब परिवार में जन्मे बिनोद बिहारी बाबू ने घर की आर्थिक स्थिति को संबल प्रदान करने के लिए किरानी की नौकरी से अपने जीवन की शुरुआत की। सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी एक तंज, एक ताना—"तुम किरानी हो, किरानी की हैसियत में रहो"—ने उनके मन, मस्तिष्क और चेतना को ऐसा आघात पहुँचाया कि उन्होंने नौकरी करते हुए पहले इंटर, फिर ग्रेजुएशन और फिर लॉ की डिग्री लेकर उक्त व्यक्ति के सामने अपनी हैसियत ही नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्पित व्यक्तित्व का परिचय भी दे दिया।
हम युवाओं के सामने बुलंद और एकनिष्ठ इच्छाशक्ति के साथ कुछ भी पा लेने का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है भला! सामाजिक उत्थान में युवाओं की भागीदारी की मिसाल पेश करते हुए विनोद बाबू बोकारो और सिंदरी जैसे जगहों से विस्थापित रैयतों के केस निशुल्क लड़ते थे, और उनके हक का मुआवजा मिल जाने के बाद उनकी खुशी से दिए गए पैसों से अपना बसर करते थे। ऐसे थे हमारे विनोद बाबू।
लोगों के आह्वान और सरकारी मशीनरी की विफलता ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। 1971 का चुनाव वे बेशक हार गए, पर "हार के जीतना जिसे आता है वही समाज में क्रांति लाता है"।
1973 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की, जिसमें उनका साथ शिबू सोरेन और ए.के. राय जैसे नेताओं ने दिया। 1980 में वे टुंडी विधानसभा से विधायक चुने गए, बाद में 1991 में वे गिरिडीह से सांसद बने।
एक सफल रणनीतिकार, कलमकार और अधिवक्ता के रूप में विनोद बाबू हमारे लिए सदा प्रासंगिक रहेंगे।
झारखंड आंदोलन, जिसे पहले मूलतः आदिवासियों का आंदोलन माना जाता था, विनोद बाबू की देन से वह एक समग्र आंदोलन बना और गैर-आदिवासियों का आंदोलन भी इसे माना गया।
सच्चे अर्थों में झारखंड की राजनीति के भीष्म पितामह, समाज में व्याप्त कुरीतियों, विसंगतियों और अंधविश्वास के खिलाफ समर्पित भाव से लोगों की चेतना को जगाने वाले विनोद बाबू किसी मसीहा से कम नहीं थे।
गोहाइल पूजा, टुसू पर्व, जितिया, करम, सोहराय, मनसा पूजा जैसे कई धार्मिक अनुष्ठानों के महत्व को राज्य भर में व बाहर भी प्रचारित और प्रसारित कर कई मौकों पर राज्य के मान, सम्मान और गरिमा को बढ़ाने का श्रेय विनोद बाबू को ही जाता है।
साथ ही, कुरमाली और खोरठा भाषा की पढ़ाई आज अगर रांची विश्वविद्यालय में हो रही है, तो वह भी विनोद बाबू की ही देन है, जिसके लिए आज की युवा पीढ़ी सदा उनकी ऋणी रहेगी। आज हम सत्ता और शासन में बैठे अपने नीति-नियंताओं से आह्वान करते हैं कि सामाजिक समरसता और युवा शक्ति के प्रतीक, और हमारे प्रेरणा स्रोत बिनोद बिहारी महतो के नाम पर रांची के रातू रोड फ्लाइओवर का नामकरण किया जाए।
इस पुनीत कार्य में सहयोग और राज्य सरकार की सहभागिता, हमारे जननायक के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी और युवाओं के अंदर दृढ़ संकल्प के साथ लगन से आगे बढ़ने की अलख जगाने का काम करेगी।
(लेखक झारखंड आंदोलनकारी और लंबे समय तक आजसू से जुड़े रहे हैं)