रांची
आज रांची में :देशज अभिक्रम', रांची तथा 'असर' के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय युवा महिला चित्रकारों की कार्यशाला “जेंडर और क्लाइमेट चेंज” का समापन हुआ। इस अवसर पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में प्रतिभागी कलाकारों द्वारा तैयार की गई पेंटिंग्स की एक प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हुए। इस अवसर पर सभी प्रतिभगी कलाकारों ने अपने अपने बनाये चित्रों के थीम को दर्शकों के साथ सजग किया। समापन समारोह में विशिष्ठ अतिथि द्वारा सभी कलाकारों को झारखंडी शाल, मोमेंटो, प्रमाण-पत्र प्रदान किए गए।
विशिष्ठ अतिथि के तौर पर आमंत्रित थे, रांची के वरिष्ठ चित्रकार विनोद रंजन, दिनेश कुमार सिंह, रामानुज शेखर तथा हेमलता दत्ता। कार्यशाला में शामिल 19 युवा महिला कलाकारों ने जलवायु परिवर्तन के लैंगिक प्रभावों को अपनी कला के ज़रिए उकेरा। कलाकारों की रचनाओं में एक ओर सूखा, बाढ़, वनों की कटाई और खनन जैसी आपदाओं के बीच महिलाओं के संघर्ष थे, तो दूसरी ओर उनके अनुभव, नेतृत्व और समाधान सुझाने वाली चेतना भी दिखाई दी।
वरिष्ठ चित्रकार विनोद रंजन ने कहा कि - “जब महिला कलाकार जलवायु संकट को अपनी संवेदनाओं से जोड़ती हैं, तो वह सिर्फ चित्र नहीं बनातीं — वे बदलाव की इबारत लिखती हैं।”
दिनेश कुमार सिंह ने कहा कि - जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं पर असमान बोझ पड़ता है। रामानुज शेखर ने कहा- "पारंपरिक ज्ञान, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और नेतृत्व की क्षमता के कारण महिलाएँ जलवायु समाधान की अग्रदूत हो सकती हैं।" वंदना टेटे ने कहा कि "कला एक सशक्त संवाद का माध्यम है, जो तकनीकी भाषा की जटिलताओं से परे जाकर सीधे हृदय को स्पर्श करती है।"
देशज अभिक्रम के प्रतिनिधि शेखर ने कहा, “इस कार्यशाला में हमें सिर्फ चित्र नहीं मिले, बल्कि एक ऐसा दस्तावेज मिला है जो बताता है कि जलवायु न्याय के बिना सामाजिक न्याय अधूरा है। यह कार्यशाला महिलाओं के अनुभवों, उनके पर्यावरणीय संघर्षों और उनके समाधानों को दृश्य रूप में सामने लाने का एक जरिया बनी है।" कार्यक्रम में शामिल चित्रों की एक प्रदर्शनी जून महीने में राँची में आयोजित की जाएगी, ताकि आमजन भी महिला दृष्टिकोण से जलवायु परिवर्तन के असर को समझ सकें।" कर्यक्रम का संचालन श्रावणी और शशि बारला ने किया।