द फॉलोअप डेस्क
बिहार मे इसी साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लेकिन चुनाव से पहले बिहार में राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। कुछ दिनों पहले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी से 6 साल के लिए निष्काषित कर दिया था। यह मामला अभी शांत नहीं हुआ था कि एक और ऐलान लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने कर दिया है। बता दें कि चिराग पासवान की बिहार विधानसभा चुनाव में डायरेक्ट एंट्री होने जा रही है। चिराग के चुनाव लड़ने के ऐलान से सियासी बाजार मे मानों तूफान सा उठ गया है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने चिराग के सामान्य सीट से चुनाव लड़ने को लेकर फैसला किया है। इस बात को लेकर LJP (R) के बैठक मे प्रस्ताव पारित हुआ था। इसके बाद अब चिराग पासवान के चुनाव लड़ने की बात का ऐलान भी हो गया है। बता दें कि यह पहली बार होगा कि चिराग पासवान विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। ऐसे मे सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर चिराग ने केंद्रीय मंत्री होते हुए बिहार विधानसभा चुनाव के रण मे उतरने का फैसला क्यों लिया?
दरअसल चिराग पासवान को लेकर कई बार यह बात होती है कि अब वह केंद्र की राजनीति से खुद को बिहार की सियासत मे शिफ्ट करना चाहते है। चिराग पासवान अपनी पार्टी के बिहार में भविष्य को देखते हुए अब जमीनी स्तर पर खुद को बड़ा नेता साबित करने के प्लान मे काम कर रहे है। ऐसे में उनके बिहार विधानसभा चुनाव मे सक्रियता से उतरने को लेकर फैसले को ना केवल रणनीतिक माना जा रहा है, बल्कि उनका यह कदम उनके राजनीतिक भविष्य को मजबूत करने की दिशा में अहम माना जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि वह अपने इस फैसले से बिहार में नीतीश कुमार के विकल्प के तौर पर और तेजस्वी यादव के मुकाबले खुद को स्थापित करना चाहते हैं। इसके साथ-साथ वह अपनी पार्टी को मजबूत करना चाहते हैं।
चिराग बनना चाहते है नीतीश का विकल्प!
ऐसा माना जा रहा है कि नीतीश कुमार का यह चुनाव लास्ट होने वाला है। बिहार मे NDA को काफी लंबे समय से एक युवा चेहरे की तलाश थी। ऐसे में इस बात पर चिराग की नजर जरूर होगी। नीतीश की सियासी जमीन पर चिराग अपनी फसल काटने के प्लान पर काम कर रहे हैं। वह NDA के सामने खुद को स्थापित करके अपने आप को एक मजबूत चेहरा पेश करना चाहते हैं। तेजस्वी हैं चिराग के लिए बड़ी चुनौती
तेजस्वी यादव के सामने खुद को स्थापित करना चिराग के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। बिहार के नेता के रूप मे तेजस्वी स्थापित हो चुके हैं। लेकिन अब भी चिराग को केंद्र का नेता माना जाता है। ऐसे मे अब बिहार मे चिराग खुद को तेजस्वी के मुकाबले स्थापित करना चाहते हैं। बता दें कि चिराग ने ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के नारे से दलित और युवा वोटरों को साधने की कोशिश की है। हालांकि लोग उनकी इस बात पर तब यकीन करेंगे जब वह खुद बिहार के चुनावी रण मे उतरेंगे।
चाचा पशुपति की सियासत को खत्म करना चाहते है चिराग!
चिराग और उनके चाचा पशुपति पारस के बीच रामविलास पासवान की विरासत को लेकर काफी लंबे समय से टकराव है। साल 2024 मे चिराग पासवान ने भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया था। ऐसे में पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी हाशिए पर चली गई थी। चिराग के बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के फैसले से ऐसा लगता है कि अब वह अपने चाचा की सियासत को भी खत्म करने के प्लान पर काम कर रहे हैं।
LJP (R) को जमीन पर मजबूत करना
यह बात सच है कि रामविलास पासवान के निधन के बाद LJP कमजोर हुई है। पार्टी को चाचा-भतीजे की लड़ाई में काफी नुकसान हुआ है। हालांकि उस नुकसान की भरपाई करने की चिराग ने कोशिश की है। LJP (R) ने 2024 के लोकसभा चुनाव मे 5 सीटें जीतकर 100% स्ट्राइक रेट हासिल किया। ऐसे में विधानसभा चुनाव में अब वह इस चीज़ को दोबारा दोहराकर पार्टी को बूथ स्तर पर मजबूत करना चाहते हैं। उनका प्लान दलित वोटरों को साधना, खासकर पासवान समुदाय को एकजुट करने का है। इसमें उनके चाचा पशुपति पारस सेंधमारी में जुटे हुए हैं।