अमन मिश्रा
सिमडेगा जिले के कादो पानी पंचायत में जल संरक्षण के लिए एक अनोखा जन अभियान चल रहा है — “नगाड़ा बजाओ, जल बचाओ”। इस पहल का मक़सद सिर्फ पानी बचाना नहीं, बल्कि हर खेत, घर और परिवार को जल-संपन्न बनाना है।
इस अभियान में गांव के लोग स्वयं श्रमदान कर तालाब और जलकुंड बना रहे हैं ताकि बारिश का पानी खेतों में रुके और पानी की कमी से निपटा जा सके। खास बात यह है कि महिलाएं इस मुहिम की अगुवा हैं — सुबह से शाम तक धूप में मेहनत कर गड्ढे खोद रही हैं और जल संरक्षण के कामों में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं।
एक महिला ने बताया, "हम खुद गड्ढे बना रहे हैं ताकि बारिश का पानी रुके और खेतों में नमी बनी रहे। इससे अच्छी फसल होगी और हमारे परिवार को फायदा होगा।"
14 लाख लीटर जल संरक्षित करने की दिशा में बढ़ते कदम
अब तक अभियान के तहत कई जलकुंड और तालाब बनाए जा चुके हैं।
• हर जलकुंड में करीब 1000 लीटर पानी संरक्षित किया जा सकता है।
• 108 समूहों की मदद से 10 लाख लीटर से अधिक जल सहेजने का लक्ष्य है।
• 5 गांवों में बनने वाले तालाबों से लगभग 3 लाख लीटर जल संरक्षित होगा।
इस तरह कुल 14 लाख लीटर जल बचाने की दिशा में काम हो रहा है, जिससे खेती और पीने के पानी दोनों की समस्या दूर होने की उम्मीद है।
सामूहिक श्रमदान बनी ताक़त
यह मुहिम केवल सरकारी योजनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि समुदाय की सामूहिक चेतना और ज़िम्मेदारी का प्रतीक बन चुकी है। महिलाएं, पुरुष और बच्चे मिलकर जल संरचना तैयार कर रहे हैं। साथ ही लोग जल संरक्षण के महत्व को लेकर एक-दूसरे को जागरूक भी कर रहे हैं।
जिला भूमि संरक्षण पदाधिकारी दानिश मिराज ने कहा, "यह सिर्फ एक योजना नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर गाँव की दिशा में एक ठोस कदम है। जल संरचना के साथ-साथ सामाजिक मानसिकता में भी बदलाव आ रहा है।"
प्रकृति से प्रेम ही असली प्रेरणा
भूमि संरक्षण विभाग के सुभाष ने कहा, "हम जल संरक्षण का काम तो करते ही हैं, लेकिन असली बदलाव तब आएगा जब लोगों के भीतर जल के प्रति प्रेम होगा। इसलिए हमने ‘नगाड़ा बजाओ, जल बचाओ’ अभियान शुरू किया है, जिसमें श्रमदान से प्रो-कुलेशन टैंक और लूज़ बॉर्डर स्ट्रक्चर बनाए जा रहे हैं, ताकि बारिश का पानी खेतों में ठहरे और नमी बनी रहे।"
उन्होंने आगे कहा, "यह गांव अब यह ठान चुका है कि हर बूंद पानी को बचाना है और जल के मामले में आत्मनिर्भर बनना है।"
गांव से उम्मीद की लहर
यह पहल अब सिर्फ जल संकट से लड़ने का उपाय नहीं, बल्कि गांव की आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधारने का माध्यम बन चुकी है। खेतों में नमी लौट रही है, जलस्रोत फिर से भरने लगे हैं और ग्रामीणों में आत्मविश्वास जागा है कि सामूहिक प्रयासों से कोई भी संकट सुलझाया जा सकता है।
यह अभियान आने वाले दिनों में न केवल झारखंड, बल्कि पूरे देश के लिए जल संरक्षण का एक मॉडल बन सकता है।
क्या कहते हैं ग्रामीण
बागेश्वरी अहमद: "जल संरक्षण से ही गांव का भविष्य सुरक्षित होगा"
गांव के निवासी और जीवन ज्योति संस्था के अध्यक्ष बागेश्वरी अहमद खुद गड्ढा खोदकर जल स्रोतों के संरक्षण में जुटे हैं। उन्होंने बताया, “हमने घर के कामकाज छोड़ दिए हैं और गांव के विकास में लग गए हैं। हमारा मकसद है कि पानी गाँव में रुके और हर परिवार को इसका लाभ मिले।” उनका मानना है कि यदि हर ग्रामीण इसी तरह श्रमदान करे, तो न सिर्फ जल संकट कम होगा बल्कि आने वाली पीढ़ियां भी सुरक्षित रहेंगी।
सुलोचनी देवी: "गांव का पानी गांव में, खेत का पानी खेत में"
सुलोचनी देवी जल संचयन के लिए गड्ढा खुद रही हैं ताकि बारिश का पानी बहकर न जाए और खेतों में उपयोग हो सके। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि खेत का पानी खेत में और गाँव का पानी गाँव में ही रहे। इससे खेती सुधरेगी और गाँव भी तरक्की करेगा।” उनका मानना है कि पानी रोकने से कृषि के साथ-साथ पशुपालन और पीने के पानी की दिक्कतें भी कम होंगी।
कमला देवी: "गरीब हैं, पर पानी बचाने की चाह बड़ी है"
आर्थिक रूप से कमजोर होते हुए भी कमला देवी जल संरक्षण के इस अभियान में दिनभर गड्ढा खोदने का काम कर रही हैं। उन्होंने कहा, “हम गरीब ज़रूर हैं, लेकिन पानी की कीमत जानते हैं। अगर बारिश का पानी बचा लिया जाए, तो फसलें भी अच्छी होंगी और हमारा जीवन भी सुधरेगा।” कमला देवी का विश्वास है कि यह मेहनत उनके परिवार की आजीविका बेहतर बनाएगी।
नीतियां सिंह: "जल ही जीवन है" — टैंक बनाकर रोक रहे बहता पानी
जागरूक ग्रामीण नीतियां सिंह ने बताया कि वे जल संचयन को लेकर गंभीर हैं और उसी सोच से 3x1x1 मीटर का जल संग्रहण टैंक बना रहे हैं, जिसमें लगभग 1000 लीटर पानी संग्रहित हो सकता है। उन्होंने कहा, “अगर हम बहते पानी को संरक्षित कर लें, तो खेतों में नमी बनी रहेगी और गाँव की जल ज़रूरतें पूरी होंगी।” नीतियां मानते हैं कि जब हर व्यक्ति जिम्मेदारी से पानी बचाएगा, तभी जल संकट पर काबू पाया जा सकेगा।