डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की हालिया नियुक्तियों ने वॉशिंगटन से लेकर नई दिल्ली तक हलचल मचा दी है। व्हाइट हाउस के ‘Advisory Board of Faith Leaders’ में जिन दो मुस्लिम नेताओं को जगह दी गई है, उनमें से एक—इस्माइल रॉयर—पूर्व में आतंकवाद के मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है। दूसरा नाम है—जायतूना कॉलेज के सह-संस्थापक और प्रसिद्ध इस्लामिक स्कॉलर शेख हमजा यूसुफ का, जिन पर भी चरमपंथी संगठनों से जुड़ाव के आरोप लगे हैं।
लश्कर कनेक्शन वाला नाम बोर्ड में
इस्माइल रॉयर, जो कभी रेंडेल रॉयर के नाम से जाने जाते थे, को 2004 में अमेरिकी अदालत ने "वर्जीनिया जिहादी नेटवर्क" से जुड़े मामलों में दोषी ठहराया था। आरोप थे कि उन्होंने पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के ट्रेनिंग कैंप में आतंकियों को भेजा और हथियार प्रशिक्षण में मदद की। उन्हें 20 साल की सज़ा मिली, जिसमें से 13 साल जेल में बिताने के बाद वे अब एक धार्मिक स्वतंत्रता संगठन में कार्यरत हैं।
रॉयर ने 2023 में एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि उन्हें लश्कर का तरीका पसंद आया था और उन्हें उस समय यह समूह एक सामान्य इस्लामिक संगठन लगा था। अमेरिकी जांच एजेंसियों के मुताबिक, उन्होंने भारत के खिलाफ संभावित हमलों के लिए आतंकियों को आरपीजी (रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड) ट्रेनिंग दिलाने तक में भूमिका निभाई थी।
हमजा यूसुफ को लेकर भी विवाद
बोर्ड में दूसरी नियुक्ति—शेख हमजा यूसुफ—को लेकर भी सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में आलोचना हो रही है। ट्रंप समर्थक और दक्षिणपंथी कार्यकर्ता लारा लूमर ने आरोप लगाया कि यूसुफ का संबंध मुस्लिम ब्रदरहुड और हमास जैसे संगठनों से रहा है, और वे शरीया कानून की कट्टर व्याख्या को बढ़ावा देते हैं। लूमर ने यहां तक दावा किया कि यूसुफ जिहाद की असली परिभाषा को ‘छिपाते’ हैं और उनका कॉलेज इस्लामी कट्टरता का पोषण करता है।
भारत ने जताई चिंता
रॉयर की नियुक्ति को लेकर भारत में भी चिंता जताई गई है, खासकर इसलिए क्योंकि लश्कर-ए-तैयबा वही संगठन है जिसे 2008 के मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड माना गया था। उस आतंकी हमले में 166 लोगों की जान गई थी। हाल ही में भारत ने "ऑपरेशन सिंदूर" के तहत लश्कर और जैश के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक्स किए थे। इन हमलों में लश्कर के मुख्य प्रशिक्षण केंद्रों में से एक—मुरीदके स्थित मरकज़ तैबा—को नष्ट कर दिया गया।
वॉशिंगटन की चुप्पी
इन विवादास्पद नियुक्तियों पर व्हाइट हाउस की ओर से अब तक कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है। हालांकि, सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में यह मुद्दा तेजी से तूल पकड़ रहा है और इन नियुक्तियों पर अमेरिका के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी सवाल उठने लगे हैं।