द फॉलोअप डेस्क
जानबूझकर विधि व्यवस्था की ड्यूटी में अनुपस्थित रहने के आरोप से लोहरदगा जिले के कैरो अंचल अधिकारी ब्रजलता बच गई। अपनी सफाई में उन्होंने कहा कि उनके पास कोई सरकारी वाहन उपलब्ध नहीं था, न ही कोई प्राइवेट कार या वाहन मिला और न ही किसी पदाधिकारी से मदद मिली जिस वजह से वह समय पर ड्यूटी पर नहीं आ सकीं। हालांकि वह किसी व्यक्ति के मोटरसाइकिल से पुलिस ओपी पहुंची लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। बता दें कि यह मामला साल 2015-16 का है जिस पर फैसला सरकार ने अब सुनाया है।
दरअसल, 26 सितंबर 2015 को लोहरदगा जिला के कुडू थाना अंतर्गत लावागाई गांव में एक घटना घटी थी। इसके बाद दूसरे दिन 27 सितंबर को बजरंग दल, जय श्रीराम समिति एवं विश्व हिंदू परिषद द्वारा लोहरदगा बंद के आह्वान किया था। इसे लेकर लोहरदगा डीसी ने विधि-व्यवस्था की ड्यूटी पर ब्रजलता को भी लगाया था। लेकिन समय पर उन्होंने काम पर योगदान नहीं दिया। ऐसे में डीसी ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए आरोप पत्र तैयार कर कार्मिक को कार्रवाई की अनुशंसा की। यह कहा गया कि बिना सूचना के अनुपस्थित रहने या अवकाश स्वीकृति के बिना मुख्यालय में अनुपस्थित रहने की वजह से विधि व्यवस्था संधारण में दिक्कत हुई और सरकार का काम बाधित हुआ। तत्कालीन सीओ के कर्तव्य के प्रति निष्ठा का अभाव मानते हुए उपायुक्त ने कार्रवाई की बात कही।
ऐसे में पूरे मामले में स्पष्टीकरण चला, जिस पर ब्रजलता ने जवाब भी दिया। जवाब में उन्होंने कहा कि 27 सितंबर रविवार सुबह सात-आठ बजे डीसी के स्टेनो के एसएमएस से उन्हें यह जानकारी मिली कि उन्हें विधि-व्यवस्था संधारण के लिए कैरो अंचल प्रतिनियुक्त किया गया। लेकिन उन्हें कैरो अंचल अंतर्गत कोई विभागीय वाहन उपलब्ध नहीं था। ऐसे में उन्होंने दूरभाष से बीडीओ कैरो से वाहन उपलब्ध कराने के लिए संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका। उन्हें चक्का जाम और बंदी के कारण कोई किराये का वाहन भी नहीं मिला। उन्होंने वाहन की मांग जिला योजना पदाधिकारी से भी संपर्क कर किया, लेकिन वाहन उपलब्ध नहीं हो सका। अंत में उन्हें एक अनजान मोटरसाइकिल वाले व्यक्ति ने मदद की और वह करीब दोपहर 3 बजे कैरो थाना पहुंचीं। तब तक उन्हें पता चला कि सभी अधिकारी अपनी ड्यूटी पूरी करके मुख्यालय वापस लौट चुके हैं। ऐसे में वह विभागीय वाहन की अनुपलब्धता के कारण समय पर ड्यूटी नहीं कर सकीं। हालांकि उनका यह जवाब संतोषजनक नहीं माना गया और भविष्य में सचेत रहने के लिए सरकार ने समीक्षा कर उन्हें चेतावनी देते हुए आरोपों से मुक्त कर दिया। कार्मिक विभाग ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है।