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1.4 बिलियन डॉलर के लोन के लिए पाक ने मानी IMF की युद्ध विराम की शर्ते?

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द फॉलोअप डेस्क 
पिछले कुछ दिनों में भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते असामान्य हैं। इन रिश्तों के असामान्य होने के पीछे जो शुरुआती वजह थी, वह थी, पहलगाम में 26 निर्दोष लोगों के पाक समर्थित आतंकवादियों द्वारा की गयी हत्या। उसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे तनावपूर्ण माहौल ने जन्म ले लिया। ये स्थिति बनते ही दोनो तरफ से फाइटर जेट, मिसाइल और ड्रोनों से हमले की बरसात सी होने लगी। सैनिकों को तो छोड़िए इसमे कई आम नागरिक या तो हताहत हुए या उन्हें इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। बात जब अंतरराष्ट्रीय, राजनैतिक, आर्थिक संगठनों या देशों तक पहुंची, तो वे इसके बीच-बचाव की कोशिश में लग गए। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने CEASEFIRE यानि की सघर्ष विराम की बात कही। इसी बीच पाकिस्तान ने IMF के पास जो एक अरब डॉलर के ऋण के लिए अर्जी डाली थी उसकी स्वीकृति पर विचार किया जाने लगा।
इसका भारत ने पुरजोर विरोध ये कहते हुए किया कि पाकिस्तान द्वारा इसका दुरुपयोग आतंकवाद को बढावा देने के लिए किया जा सकता है। इस आरोप के साथ नई दिल्ली ने खुद को IMF की एक महत्वपूर्ण बैठक में मतदान से अलग रखा। नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान को 9 मई को CLIMATE RESSILIANCE LOAN PROGRAM के तहत, 1.4 BILLION डॉलर रुपये का नया लोन मिल गया। दूसरी तरफ दोनों देशों के DGMO की बाते जारी थी और ये तय हुआ कि शनिवार शाम पाँच बजे से दोनों देशों के बीच युद्ध विराम लागू हो जाएगा। 

पर क्या बात सिर्फ इतनी है? भारत और पाकिस्तान, जो पूरी तरह से युद्ध की ओर बढ़ रहे थे, इतनी जल्दी युद्ध विराम समझौते पर पहुचे कैसे? इसमें कोई संदेह नहीं है कि पाकिस्तान ने तीन दिनों की मार-काट के बाद शांति के लिए यूएनओ तक में गुहार लगाई। 
लेकिन क्या कोई और कारण था? क्या अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा पाकिस्तान को स्वीकृत एक अरब डॉलर के ऋण के साथ यह शर्त थी कि पाकिस्तान को भारत के साथ तत्काल युद्ध विराम की घोषणा करनी पडेगी? भारत के कुछ अखबारों के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम पर द्विपक्षीय रूप से काम किया गया था। लेकिन अमेरिका ने संघर्ष विराम की तत्काल स्वीकृति के लिए आईएमएफ से 1.4 BILLION डॉलर के ऋण को जोड़कर इस्लामाबाद पर तत्काल तनाव कम करने का दबाव बनाया था। भारत ने इस ऋण का विरोध किया था। 

आईएमएफ को इस ऋण को ऐसे समय में स्वीकृत करने के लिए काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।  पाकिस्तान भारत के नागरिक और सैन्य ठिकानों पर आतंकी शिविरों पर हमले कर रहा था। भारत के खिलाफ पाकिस्तान के हमलों को आत्मघाती माना गया, तब जब ऐसे समय में आईएमएफ बोर्ड को अपनी वित्तीय सुविधाओं की शर्तों की समीक्षा करनी थी। 
इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प दावा करते हैं कि उन्होंने रात के कई घंटों तक इस युद्ध विराम पर बातचीत की। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो दोनों ने उनके ट्वीटर पर जारी बयानों को साझा किया। रुबियो ने इससे भी पहले भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के नेताओं से बात की थी। उन्होंने सबसे पहले भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से बात की थी। उसके बाद पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर से। अखबारी सूत्रों के मानें तो, अमेरिका ने पाकिस्तान पर सीधा दबाव बनाकर दोनों देशों के बीच तनाव कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें संघर्ष विराम को तत्काल स्वीकार करने के लिए 1.4 बिलियन डॉलर का IMF ऋण भी शामिल है। ये कहना ज्यादा अनुचित नहीं होगा की पाकिस्तान दिवालियापन के कगार पर खड़ा है। यह भी सच है कि पाकिस्तान की इकोनॉमी का एक बड़ा हिस्सा बहुपक्षीय वैश्विक एजेंसियों तथा चीन, सऊदी अरब और कतर जैसे देशों से मिलने वाली सहायता पर निर्भर है। 
हालांकि CEASEFIRE के बावजूद सीमावर्ती इलाकों से छिटपुट गोलीबारी की घटना सामने आई है। ये देखना काफी महतवपूर्ण होगा की दोनों देशो द्वारा CEASEFIRE का कितना और कब तक पालन किया  जाता है।


 

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